Saturday, January 29, 2011

हे राम 2011

हे राम ० ० ० ० ० ० बापू को बिहारी जन का सलाम

इप्टा का आयोजन बिहार के संस्थाओं के साथ - बिहार राज्य साम्प्रदायिकता एकता कमिटी, अल खैर चैरिटबल ट्रस्ट, गांधी संग्रहालय, East एंड वेस्ट Educational Society, निर्माण कला मंच, अनुपम समाज सेवा संसथान, बिहार लोक अधिकार मंच, समर, कोशिश, नतमंड़प, सूत्रधार

३० january २०११ को सुबह ११ बजे से शाम ४ बजे तक

लोकप्रिये चर्चा

  • गांधी की कर्मभूमि में फासीवादी ऊभार - डॉ० डी एम् दीवाकर
  • नशा, हिंसा और गांधी - सत्यनारायण मदन
  • गांधी का अंतिम आदमी - अरशद अजमल
  • गाँधी और पत्रकारिता - जीतेन्द्र

गायन

चेलसी खान, रूपा सिंह, सीताराम सिंह, आशुतोष कुमार मिश्र, मनोरंजन ओझा, निशा, shwet प्रीटी और अनुपमा शरण
नाटक

  • इप्टा पटना की प्रस्तुति एल पी जी
  • एच एम् टी की प्रस्तुति गांधी
  • निर्माण कला मंच की प्रस्तुति बकरी

आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

Saturday, September 1, 2007

इप्टा और गाँधी

इप्टा के मेरे साथियों और यहाँ गाँधी मैदान में उपस्थित तमाम दोस्तो! आपने देखा होगा यहाँ कई सरे स्लोगंस टांगें हैं. जिसमें एक है – इप्टा कि नायक है. इप्टा – भारतीय जन नाट्य संघ ने जनता को नायक अपना हीरो मानकर कर यह स्लोगन बनाया है. भारत कि राजनीती में अगर सबसे पहले किसी आदमी ने, नेता ने जनता को नायक का दर्ज़ा तो इअसको कहनें में कोई अतिशयोक्ति नही होगी कि व्हो आदमी, नेता गाँधी था. आजादी की लड़ाई में शुरू शुरू में पढे लिखे मध्य वर्ग के लोग थें. एक ज़माना आया और असहयोग आंदोलन चला; जिसमें पहली बार जनता नायक बनी. जनता की हाथ में झंडा थमने का काम जिस व्याक्तिने, नेता ने किया व्हो गाँधी था. जनता में भी कौन से लोग, जिसको सबसे ज़्यादा अहमियत गाँधी या इप्टा जैसे संगठनो ने दे, व्हो आदमी जो सबसे नीचे है, शोषित है, सबसे खराब हालत में है. व्हो आदमी अन्तिम अन्तिम आदमी है. अगर अन्तिम आदमी ऊपर उठाता है तो पुरा समाज ऊपर उठाता है. चून्ही जाहिर है अन्तिम आदमी ऊपर उठेगा तो उसके ऊपर के आदमी को भी ऊपर उठाना होगा नही तो व्हो नीचें हो जाएगा – यह ध्यान रखना है. इसलिये गाँधी के वीचार गाँधी का तरीका जितना मौजूं आजादी की लड़ाई में था उतना मौजूं उतना प्रासंगिक आज भी है. और भी ढ़ेर साड़ी बातें हैं. बातें हैं गाँधी के बारें में. लेकिन यह बात बहुत महातावापुर्ना हो जाती है. जैसा लोकतंत्र हमने बनाया. लोकयंत्र है हमारें यहाँ लेकिन उस लोकतंत्र की कमजोरी अगर कहीँ नज़र आती है तो एक तरफ नैतिक सिद्धानता कहीँ कमजोर पद रहें है और दूसरी तरफ उस अन्तिम आदमी की उपेक्षा हो रही है. अन्तिम आदमी को देखा नहीं जा रह है. उस अन्तिम आदमी को देखना. देखना गाँधी कि तरह से.

और वह नैतिकता जिसका क्षरण हो रह है। जो कमज़ोर पड़ा रह है। यह दोनो बातें गाँधी के साथ याद कारन लाज़मी है। चूँकि गाँधी इन बातों के साथ खडें रहें थीं. आपने सुना भी होगा – सत्य के प्रति ऊनाकी निष्ठा, सत्याग्रह के सिद्धान्त या दूसरोईं को स्वीकार करें की भावना. अभी समाज में लिस प्रकार से दूसरों के लिए असहायता, अपने पर सारा का सारा ध्यान. स्वकेंद्रिता. स्वराथापरक. गाँधी का पूरा का पूरा दराशाना अपने से निकल कर दूसरों तक जाता है. दूसों के हित तक अन्तिम आदमी के हित तक पहुन्चंता है. उसमें सहिशुनाता जिसको कहतें दूसरों की भी स्वीकृति. अपने विरोधियों कि भी स्वीकृति. आपने सुना होगा गाँधी जी कहतें थीं कि विरोधी जो हमारे विरोध में खड़ा है उसमें कुछा है जिसका हम विरोध कर रहे हैं, जो ग़लत बात है, उस व्यक्ति का विरोध नहीं कर रहें हैं. इसलिए आप किसी विचार से असहामता हो सक्ल्तैन हैं. व्यक्ति की अस्वीकृति का कोई करना नें है. चाहे व्हो व्यक्ति मात्र हो, या कोई समूह हो या कोई समुदाय हो. उससे लादानें के लिए भी गाँधी को याद करना हमारें लियें एक रास्ता हो सकता है. यह अवसर है, इस किस्म का, जब हम गाँधी को याद करतें हैं तो उनके सिद्धांतों को भी याद करतें हैं. उन्हूनें लड़यियाँ लदी थी और लड़ईयों कि ज़रूरत आज भी बनी हुई है और उन लड़ईयों में हथियार हमारे पास है विचार के स्तर पर या तरीकों के स्तर पर.


उनमें से कई हथियार बडे कार्गा उस समाया साबित हुई थें और आज भी कारगर होगें. और व्हो हथियार ऐसे हैं जिन हथियारोएं से समाज में कटुता नही बढ़ती है, समाज में और शांति आती है. बेहतर समाज बँटा है. बेहतर समाज बनने के लिए जरूरी है कि ध्वंस की आवश्यकता कि जगह अची से अची विचारों को ज़मीं मेले. ज्यादा जगह मेले. गाँधी वैसे ही एक राह के समर्थाका थें या मर्गादार्शाका थें.

में समझता हूँ कि इप्टा का यह कर्यकरमा ऐसे विचारों को और ज़्यादा लोगों तक पहुँचनें में सहायक होगा जिसमें हम और भी लोगों के विचारों कि शामिल कर सकें. जैसे कबीर को भी हम शामिल कर लेतें हैं. ऐसे बहूत सरे विचारों को शामिल करतें हैं साथ लातें हें. इससे समाज मजबूत बनता है और समाज का हर आदमी मज़बूत बनता है और नीचे तक हम पहूंच्तें हैं और अगर हम नीचें तक सबसे नीचें तक पहूंचातें हैं तो ज़ाहिर है समाज और मज़बूत होगा. इप्टा को शुभकामनाएं.

विनय कुमार कंठ
संरक्षक , बिहार इप्टा

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गाँधी के राम: तरुण कुमार
 
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